Alone मायूस सा शहर अकेले हैं हम ग़मज़दा हवा हैं सहमें से हम। यूं चांद ना छिपा था अमावस में भी कभी हैं जिस तरह से अपने घरों में कैद हम। जीने को देखो कितना आगे आ गए हैं के सांस लेने से भी आज डर रहे हैं हम। सूनी हैं मस्ज़िदें मंदिर वीरान हैं ना पादरी ना पंडित ना साधु इमाम हैं पूछो अब इंसान से कहां खोए भगवान हैं क्यूं उसके ना वजूद को टटोलते हैं हम? अब ले लो सीख थोड़ी एक पेड़ है ये धरती ना काटो टहनियों को है बार बार कहती उमर में ये बड़ी है अभी बच्चे हैं हम पतझड़ आ गया है शायद पत्ते हैं हम। मायूस सा शहर है अकेले है हम #Poetry #seethis #abeer