मैं भी उड़ना चाहती हूं उन बादलों की तरह खुले आसमान में बहना चाहती हूं उस चंचल पवन के साथ फूलों की बगिया में चहकना चाहती हूं उन गुनगुनाते पक्षियों की तरह किसी के आंगन में खेलना चाहती हूं कल कल करती लहरों के साथ गहरे समुद्र में पर बंध जाती हूं हर बार संस्कारों के नाम पर घर की मर्यादा में दबा लेती हो खुशियों को पनपने से पहले ही अपने मन की चारदीवारी में क्योंकि लड़की हूं मैं लड़का नहीं हूं जो घूम सकूं आजादी में ©Anita Mishra #asha