रिश्तों की तलाश मे निकले जिस बाज़ार में, वहाँ बोली तो बस जिस्म की थी। प्यार बिछता चला उस चादर की सिलवटों सा जिनकी उम्र चन्द पहरों की थी। वो उलझी साँसों की तपिश थी, या घुटती हुई उम्मीद। जख्म कहे उन्हें या जुनून के छाले। वो जज्बातों के निशान थे या हसरतों की नील। बेमतलब थी वो उम्मीद, जिनकी नींव भी नासुर ही थी। बिक रहे थे ख्वाब वहाँ बिखरे सड़को के किनारे जिसकी क़ीमत बस एक रात की थी। बाकी वहाँ जो था तो बस कुछ बेबाक ख़्वाहिशों का गुलदस्ता, जिसे तलाश हर रोज़ एक मकान की थी। प्यार का बाज़ार। #yqbaba #yqdidi #yatales #yqpoetry #yqthoughts #yqfamily #yqfollow