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कुछ हक़ीक़त कुछ हक़ीक़त कुछ फ़साने, कुछ सच है कुछ बहान

कुछ हक़ीक़त
कुछ हक़ीक़त कुछ फ़साने, 
कुछ सच है कुछ बहाने,
मैं सिकंदर अपनी मर्ज़ी का, 
तुम चंद पैसो का अफ़साना । 
    
मेरी बात को समझो तो आज़ाद, 
वरना बेड़ी सिरहाना
मैं ही मौका मैं ही दस्तूर,
 तुम नादान पंछी, ढूंढे दाना । 

तनहा शायर हूँ- यश








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©Tanha Shayar hu Yash
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