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हार के चंद परेशानियो से , निकल चुकी थी घर से... थक

हार के चंद परेशानियो से , निकल चुकी थी घर से...
थक कर बैठी इक पेड के नीचे पनाह लिये...
सिर झुकाए मैं कोस ही रही थी जिंदगी को...
कि कुछ शोर सुना...सिर उठाकर देखा तो...
वो नन्ही सी चिडिया आशियाना बना रही थी तिनके बटोर कर...
कुछ हिम्मत और खुशी उसे देखकर मिली ही थी कि...
तभी पेड से गिरती कुछ पत्तियां...
जैसे खो रही थी वो वजूद अपना...
फिर वही हताशा इक बार फिर मिली...
कुछ चीटियां भी दाने ला रही थी समेटकर...
उठाकर वजन भारी चढती जा रही थी वो मिट्टी के ढेरों पर...
जैसे कह रही हो मुझसे उठ अब यह निराशा यहीं छोडकर...
आसमां की ओर देखा तो फासले अनंत से लगे...
लगा जैसे मेरे सपनो की ऊँचाइयां भी इस आसमां जितनी है...
सोचा कि यह फासले कैसे पार करूंगी मैं...
फिर नजरें क्षितिज पर गयी और जबाव मिल गया...
टूटी हुयी पत्तियां भी मुस्कुराकर बोली कि वसंत का आना अभी बाकी है...
कि तू चल इन मुश्किलों का कारवां गुजरना अभी बाकी है...
इन अंधेरी रातों का सवेरा होना अभी बाकी है...
ढलती हुयी शाम का सूरज निकलना अभी बाकी है...
जो लोग ताने कस रहे है यूं तो दास्तां-ए-जिंदगी उनकी भी कुछ खास नही...
भटके हुए मुसाफिर हैं खुद की मंजिलों का उन्हे भी एहसास नहीं...
माना रास्ते तो अंधेरे है...पर मेहनत का जुगनू इन्हे भी चमकाएगा...
और जब मंजिलें मिलेंगी तुझको तो वो खुशियों का दौर फिर आयेगा... खुशियों का दौर फिर आयेगा...
हार के चंद परेशानियो से , निकल चुकी थी घर से...
थक कर बैठी इक पेड के नीचे पनाह लिये...
सिर झुकाए मैं कोस ही रही थी जिंदगी को...
कि कुछ शोर सुना...सिर उठाकर देखा तो...
वो नन्ही सी चिडिया आशियाना बना रही थी तिनके बटोर कर...
कुछ हिम्मत और खुशी उसे देखकर मिली ही थी कि...
तभी पेड से गिरती कुछ पत्तियां...
जैसे खो रही थी वो वजूद अपना...
फिर वही हताशा इक बार फिर मिली...
कुछ चीटियां भी दाने ला रही थी समेटकर...
उठाकर वजन भारी चढती जा रही थी वो मिट्टी के ढेरों पर...
जैसे कह रही हो मुझसे उठ अब यह निराशा यहीं छोडकर...
आसमां की ओर देखा तो फासले अनंत से लगे...
लगा जैसे मेरे सपनो की ऊँचाइयां भी इस आसमां जितनी है...
सोचा कि यह फासले कैसे पार करूंगी मैं...
फिर नजरें क्षितिज पर गयी और जबाव मिल गया...
टूटी हुयी पत्तियां भी मुस्कुराकर बोली कि वसंत का आना अभी बाकी है...
कि तू चल इन मुश्किलों का कारवां गुजरना अभी बाकी है...
इन अंधेरी रातों का सवेरा होना अभी बाकी है...
ढलती हुयी शाम का सूरज निकलना अभी बाकी है...
जो लोग ताने कस रहे है यूं तो दास्तां-ए-जिंदगी उनकी भी कुछ खास नही...
भटके हुए मुसाफिर हैं खुद की मंजिलों का उन्हे भी एहसास नहीं...
माना रास्ते तो अंधेरे है...पर मेहनत का जुगनू इन्हे भी चमकाएगा...
और जब मंजिलें मिलेंगी तुझको तो वो खुशियों का दौर फिर आयेगा... खुशियों का दौर फिर आयेगा...
tanyanshi2286

Tanu Vyas

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