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घर की यादें  जो हम कभी भी भूल नहीं पाते याद आते है

घर की यादें 
जो हम कभी भी भूल नहीं पाते
याद आते हैं घर के सारे रिश्ते नाते.... 
वो दोस्तों के साथ बिताया हर लम्हा याद आता हैं 
जब भी याद आता हैं दिल को बहुत तड़पता हैं....
जब भी याद करता हु आँख मेरी भर आती हैं 
क्या करू घर की याद रोज़ आती हैं... 
वो माँ के हाथ का खाना ,जो बन गया हैं मेरे लिए एक सपना 
क्यूंकि अब हमें खाना है मेस का खाना.... 
दादीजी का लाड प्यार ,लगता था बेशुमार
क्यूंकि घर मे पड़ती थी कभी कभी मार....  
घर में पापा का बुलाना 
जैसे हर वक़्त दिल का घबराना....
पहले छोटी बहन के साथ लड़ाई 
फिर साथ मैं बैठ कर पढाई....  
पापा का हर छोटी छोटी पे समझाना 
मम्मी का हाथ उठाना.... 
वो दादीजी के हाथ की टमाटर की सब्जी 
बना देती थी वो जब भी होती थी मेरी मर्ज़ी.... 
वो मम्मी के हाथ के छोले भठूरे 
जिनके बिना छुट्टी के दिन थे अधूरे.... 
वो पापा का रात को मिठाई लाना 
हमेशा दिल को खुश कर जाना.... 
वो ताईजी ताऊजी का आवाज़ लगाना 
जैसा उनका दिल से बुलाना... 
वो गर्मियों की छुट्टी मैं नानी के घर जाना 
वरना जाके दूकान पे बैठना.... 
सुबह सुबह कामवाली की सारे गली मोहल्ले की बाते 
जैसे हर कोई उसी को आके सारी बाते बताते.... 
वो बाइक पे घूमना 
चार दोस्तों के साथ मिल बैठना.... 
स्कूल मैं हमेशा मस्त रहना 
टीचर्स के साथ अच्छा व्हायवर बनाना.... 
रात को आइसक्रीम लाना
ओर पुरे परिवार का साथ बैठ के खाना....
तारख मेहता का उल्टा चश्मा देखना 
ओर फिर पापा के साथ एक ही थाली मैं खाना खाना... 
मम्मी का यह रिश्ता देखना 
गुस्से मैं आके मेरा टीवी  टीवी का रिमोट फेकना.... 
कभी कभी घर में अकेले रहना 
फ़ालतू मैं बैठ के बोर होना.... 
पापा का घर के बाहर से आवाज़ लगाना 
दिल को ख़ुशी मिलना.... 
दादीजी करती थी बालो मैं मालिश 
याद आती हैं घर की वो बारिश.... 
बारिश के टाइम गरमा गर्म पकोड़े बनाना 
और फिर पापा को बुलाना और सबका साथ मैं खाना.... 
मेहमानो का घर आना 
उनको बहार से सम्मान दिलाके लाना... 
जाते जाते उनका पैसे देके जाना 
और सर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद देना....  #poetry
घर की यादें 
जो हम कभी भी भूल नहीं पाते
याद आते हैं घर के सारे रिश्ते नाते.... 
वो दोस्तों के साथ बिताया हर लम्हा याद आता हैं 
जब भी याद आता हैं दिल को बहुत तड़पता हैं....
जब भी याद करता हु आँख मेरी भर आती हैं 
क्या करू घर की याद रोज़ आती हैं... 
वो माँ के हाथ का खाना ,जो बन गया हैं मेरे लिए एक सपना 
क्यूंकि अब हमें खाना है मेस का खाना.... 
दादीजी का लाड प्यार ,लगता था बेशुमार
क्यूंकि घर मे पड़ती थी कभी कभी मार....  
घर में पापा का बुलाना 
जैसे हर वक़्त दिल का घबराना....
पहले छोटी बहन के साथ लड़ाई 
फिर साथ मैं बैठ कर पढाई....  
पापा का हर छोटी छोटी पे समझाना 
मम्मी का हाथ उठाना.... 
वो दादीजी के हाथ की टमाटर की सब्जी 
बना देती थी वो जब भी होती थी मेरी मर्ज़ी.... 
वो मम्मी के हाथ के छोले भठूरे 
जिनके बिना छुट्टी के दिन थे अधूरे.... 
वो पापा का रात को मिठाई लाना 
हमेशा दिल को खुश कर जाना.... 
वो ताईजी ताऊजी का आवाज़ लगाना 
जैसा उनका दिल से बुलाना... 
वो गर्मियों की छुट्टी मैं नानी के घर जाना 
वरना जाके दूकान पे बैठना.... 
सुबह सुबह कामवाली की सारे गली मोहल्ले की बाते 
जैसे हर कोई उसी को आके सारी बाते बताते.... 
वो बाइक पे घूमना 
चार दोस्तों के साथ मिल बैठना.... 
स्कूल मैं हमेशा मस्त रहना 
टीचर्स के साथ अच्छा व्हायवर बनाना.... 
रात को आइसक्रीम लाना
ओर पुरे परिवार का साथ बैठ के खाना....
तारख मेहता का उल्टा चश्मा देखना 
ओर फिर पापा के साथ एक ही थाली मैं खाना खाना... 
मम्मी का यह रिश्ता देखना 
गुस्से मैं आके मेरा टीवी  टीवी का रिमोट फेकना.... 
कभी कभी घर में अकेले रहना 
फ़ालतू मैं बैठ के बोर होना.... 
पापा का घर के बाहर से आवाज़ लगाना 
दिल को ख़ुशी मिलना.... 
दादीजी करती थी बालो मैं मालिश 
याद आती हैं घर की वो बारिश.... 
बारिश के टाइम गरमा गर्म पकोड़े बनाना 
और फिर पापा को बुलाना और सबका साथ मैं खाना.... 
मेहमानो का घर आना 
उनको बहार से सम्मान दिलाके लाना... 
जाते जाते उनका पैसे देके जाना 
और सर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद देना....  #poetry