#OpenPoetry बचपन में स्कूल ना जाने का मन होता था, स्कूल याद आता हैं अब, तब कौन जानता था बचपन में किसी चीज के लिये जिद करता था, जरूरतें पूरी नहीं होती अब, तब कौन जानता था बचपन में खाने के लिये बहुत नखरे करता था, खानें की कीमत क्या होती हैं, तब कौन जानता था बचपन में जल्दी बड़े हो जाने का मन होता था, बचपन याद आता हैं अब, तब कौन जानता था © आंजनेय अंजुल #बचपन #आंजनेय_अंजुल #OpenPoetryChallenge #OpenPoetry #NojotoNews #NojotoHindi झूठा शायर (दीप राही) ØØ7-PATEL