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अपने इरादो की बड़ी थी मैं, हुए दिल के टुकड़े तो गि

अपने इरादो की बड़ी थी मैं, हुए दिल के टुकड़े तो गिर पड़ी थी मैं,
तब लगा नजरों कों झुकाना नहीं उठाना पड़ता है, अपना सहारा ख़ुद को ही बनाना पड़ता हैं.....

©Uday Kanwar
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Uday

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