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आबाद उसी से है वीराना मोहब्बत का हुशयारों से बढ़ क

आबाद उसी से है वीराना मोहब्बत का
हुशयारों से बढ़ कर है दीवाना मोहब्बत का

वो रस भरी आँखें हैं मय-ख़ाना मोहब्बत का
चलता है निगाहों से पैमाना मोहब्बत का

अल्लाह ने बख़्शी है क्या नश्व-ओ-नुमा उस को
सौ ख़िर्मन-ए-हस्ती है इक दाना मोहब्बत का

तुम जौर-ओ-जफ़ा कर लो हम मेहर-ओ-वफ़ा कर लें
पूरा भी तो हो जाए अफ़्साना मोहब्बत का

साक़ी जो न दे बादा शिकवा नहीं कर सकते
हो ज़र्फ़ तो मिलता है पैमाना मोहब्बत का

जिबरील के शह-पर भी परवाज़ से रह जाएँ
है अर्श से भी ऊँचा काशाना मोहब्बत का

उस बज़्म की मस्ती क्यों बढ़ कर न रहे 'साक़िब'
मख़मूर ने रक्खा है पैमाना मोहब्बत का
#साक़िब अज़ीमाबादी

©साहिर उव़ैस sahir uvaish
  #rakshabandhan