मन्जिल तक न सही कहीं तो जा रहे हैं हम। साथ उनके न सही उनके बिना तो रह पा रहे हैं हम। पहले वो थे तो मिलकर सहा करते थे ग़म सारे। अच्छा है कि बाद उनके भी हर ग़म सह पा रहे हैं हम। वो समझते थे की वो हमारी मुस्कुराहट की वजह हैं। पर बाद उनके भी देखो कैसे मुश्कुरा रहे हैं हम। Satya Prakash Upadhyay VEER N Suresh Gulia smita ✍️ ishu Di Pi Ka