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"बढ़े मिसरा-ए-ऊला से गये मिसरा-ए-सानी तक। लगी ह

"बढ़े  मिसरा-ए-ऊला  से  गये मिसरा-ए-सानी तक।
लगी  है  प्यास लेकिन अब चलेगा कौन पानी तक।।
,
किसी ने दरअसल हमसे कभी मिन्नत नहीं की थी।
बिना क़िरदार के थे हम गये थे ख़ुद कहानी तक।।
,
लिखेंगें  रातभर  कुछ भी  यकीनन जागना  होगा।
बढ़ेंगें  ख़ुद  पड़े  जो  है  ये सारे लफ़्ज़ मानी तक।।
,
तलातुम  एक  दरिया  का  सदा  क़ाएम नहीं रहता।
लेकिन ग़फ़लत है तुमको ये लिखेंगें हम जवानी तक।।
,
यही  कल  रात भर हमकों नहीं जब नींद आई तब।
उठाकर  शॉल   हाथों   में  गये थे रात  रानी  तक।।
,
मुक़द्दर  में  नहीं  था  जो मयस्सर  हो  नहीं सकता।
वो जिसका था गया है बस उसी के ज़िंदगानी तक।।
,
जमीं  को  ओढ़कर  साहिल  क़ब्र  में  लेट जाऊँगा।
मगर  मैं  याद  आऊँगा  सभी  को  जावेदानी तक।।"
#रमेश 
मिसरा-ए-उला-शेर की पहली पंक्ति।
मिसरा-ए-सानी-शेर की दूसरी पंक्ति।।
मयस्सर-नसीब
जावेदानी-अनन्तकाल
"बढ़े  मिसरा-ए-ऊला  से  गये मिसरा-ए-सानी तक।
लगी  है  प्यास लेकिन अब चलेगा कौन पानी तक।।
,
किसी ने दरअसल हमसे कभी मिन्नत नहीं की थी।
बिना क़िरदार के थे हम गये थे ख़ुद कहानी तक।।
,
लिखेंगें  रातभर  कुछ भी  यकीनन जागना  होगा।
बढ़ेंगें  ख़ुद  पड़े  जो  है  ये सारे लफ़्ज़ मानी तक।।
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तलातुम  एक  दरिया  का  सदा  क़ाएम नहीं रहता।
लेकिन ग़फ़लत है तुमको ये लिखेंगें हम जवानी तक।।
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यही  कल  रात भर हमकों नहीं जब नींद आई तब।
उठाकर  शॉल   हाथों   में  गये थे रात  रानी  तक।।
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मुक़द्दर  में  नहीं  था  जो मयस्सर  हो  नहीं सकता।
वो जिसका था गया है बस उसी के ज़िंदगानी तक।।
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जमीं  को  ओढ़कर  साहिल  क़ब्र  में  लेट जाऊँगा।
मगर  मैं  याद  आऊँगा  सभी  को  जावेदानी तक।।"
#रमेश 
मिसरा-ए-उला-शेर की पहली पंक्ति।
मिसरा-ए-सानी-शेर की दूसरी पंक्ति।।
मयस्सर-नसीब
जावेदानी-अनन्तकाल
rameshsingh8886

Ramesh Singh

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