रात कट जाती है तेरे एहसास में चुपके चुपके... आँख अब रोये भी तो.....आँसू कौन देखे.... होठ सी लिए हमने.. चीख निकले कैसे... दिल धड़कता है....तो लगता है अभी जिन्दा हूँ... ख्वाब अब कोई इन पलकों तक नहीं आता.... सूने आलम में लफ्ज़ अपने ही शोर करते है.. ये कैसा सफर है...और चलना है कब तक... मंजिल खो गयी इसकी फिर भी कदम चलते हैं... भीड़ कितनी है..मगर है हर कोई अपरिचित... जाने क्यों फिर भी... लोग मेरे साथ चलते हैं.... अब कोई मुस्कुराहट इन लबों तक नहीं आती... फिर भी रह रह के ये लब है जो अब भी हिलते हैं... कौन था अब तलक साथ तेरे जो है छूट गया... लफ्ज़ टूटे हुए हैं मगर ...मुझसे प्रश्न करते हैं... क्या कोई उम्मीद टूटी है...जो दिल में अब तक थी.. या बेवजह ही इस खण्डर के पत्थर हिलते हैं... किसको पूछूँ ...जवाब भी तो कोई देगा नहीं... सूनी बस्ती है.. यहाँ अब कहाँ लोग बसते हैं.. एक रोज आएगी बहार लौट के मेरे आँगन भी... इसी उम्मीद पर ए अरमान....सफर करते हैं.... #सफर