वीरानियाँ ही वीरनियाँ है मेरा अपना कोई यहाँ नहीं, मतलब है तो मैं याद आऊँ, वर्ना मेरा कोई सगा नहीं। कागज़ और क़लम को ही मैं रोना धोना हर दिन सुनाऊँ, ख़बर नहीं मेरे साये को भी मुझपे है क्या गुज़र रही। जाने कौन जनम का मुझपे श्राप पड़ा हो जैसे कोई, महफ़िल में वीराना हूँ मैं, तन्हाई डंसती हर घड़ी। ज़रूरत एक सहारे की है, अभी साथ चलेगा कौन मेरे? सूरज जब उगेगा मेरा, साथ चलेंगे अजनबी। ख़ूबी दिखे न एक भी मुझमें, तुच्छ सभी को लागूं मैं, नाकामियों का है कौन सगा? धिक्कार मिले मैं जहाँ चली। ऐतिबार नहीं अब किसी और का, नक़ाबों में सब छिपे यहाँ, छोड़ा अपने साये ने भी ऐसे मैं ख़ुद को भी दिखती नहीं। ♥️ Challenge-764 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।