काश मैं इक दरिया सी होती...... जिसपर न कोई बंदिशे होती..... जिसकी लहरों को बिन कहे कोई पढ़ पाता जिसकी कहानियाँ यूँ अनकही सी न होती..... कोशिश करती हूँ समझाने की..पर नाकाम है शायद.... इस महफिल में हमारी अहमियत बर्बाद है शायद.... काश मदहोश सी न होती मैं फिर इन गलियों में खामोश हूँ .....पर कोशिश करती हूँ कहने की...... इन लहरों सी मदहोश नहीं...पर बेखौफ तो हूँ काश कह पाती झूम झूम कर इन लहरो की तरह... अपनी कहानी ....एक नाकाम सी कोशिश के साथ.... और इन लहरों को कोइ महसूस कर पाता.... 🤣🤣