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धुआं ही धुआं!!! रात ढली भोर हुई, शांत दिल्ली फिर

धुआं ही धुआं!!!

रात ढली भोर हुई, 
शांत दिल्ली फिर शोर हुई,
और, हवा मे ये जो नमी आने लगी है,
क्या कहना है चाहती, क्या बताने लगी है।
कि, नवंबर के माह का सर्द हवा का ‘मौसम’ आया है, 
या,खुशियां की दीवाली पर फूटे पटाखों के धुएं का जानलेवा ‘साया’ मंडराया है?
दीप जले हैं कम, पटाखे ज्यादा फूटे हैं,
राम शायद आए नहीं, वो इस बात से जो रूठे हैं।
कि आने पर मेरे तुम खुशियां मानते हो,
या आतिशबाजी कर धुंए की चादर फेलाते हो।
फिर चेहरे मुरझाते है जैसे,फूल मुरझा जाता है,
ए-इंसान तू ख़ुद गन्दा करता है हवा को 
फिर, खु़द ही तू हाहाकार मचाता है।
और ये खेती बचाने के लिए पिराली जला जला रहे हो तुम,  
मालूम भी है कि जान गवा रहे हो तुम।
पहले क्या कम था जो, और फैला दिया है,
जहां भी देखो, हर ओर धुंआ-धुंआ है।
ज़ोरो की जो पड़ रही है सर्दी नहीं धुंए के ये गर्दी है,
छींक ज़ुकाम और गला ख़राब, 
हालत बड़ी ही बे-दर्दी है। 
मस्त थी मस्तानों की ये दिल्ली...दिल्ली,
बन गई है, मरीजो की दिल्ली...दिल्ली!
शहर के हालात दिल को कचोट गए हैं,
‘राम’  लगता है आए नहीं
पुनः वनवास लौट गए है। 
पुनः वनवास लौट गए हैं।

~हेमंत राय। धुआं ही धुआं!!!

रात ढली भोर हुई, 
शांत दिल्ली फिर शोर हुई,
और, हवा मे ये जो नमी आने लगी है,
क्या कहना है चाहती, क्या बताने लगी है।
कि, नवंबर के माह का सर्द हवा का ‘मौसम’ आया है, 
या,खुशियां की दीवाली पर फूटे पटाखों के धुएं का जानलेवा ‘साया’ मंडराया है?
धुआं ही धुआं!!!

रात ढली भोर हुई, 
शांत दिल्ली फिर शोर हुई,
और, हवा मे ये जो नमी आने लगी है,
क्या कहना है चाहती, क्या बताने लगी है।
कि, नवंबर के माह का सर्द हवा का ‘मौसम’ आया है, 
या,खुशियां की दीवाली पर फूटे पटाखों के धुएं का जानलेवा ‘साया’ मंडराया है?
दीप जले हैं कम, पटाखे ज्यादा फूटे हैं,
राम शायद आए नहीं, वो इस बात से जो रूठे हैं।
कि आने पर मेरे तुम खुशियां मानते हो,
या आतिशबाजी कर धुंए की चादर फेलाते हो।
फिर चेहरे मुरझाते है जैसे,फूल मुरझा जाता है,
ए-इंसान तू ख़ुद गन्दा करता है हवा को 
फिर, खु़द ही तू हाहाकार मचाता है।
और ये खेती बचाने के लिए पिराली जला जला रहे हो तुम,  
मालूम भी है कि जान गवा रहे हो तुम।
पहले क्या कम था जो, और फैला दिया है,
जहां भी देखो, हर ओर धुंआ-धुंआ है।
ज़ोरो की जो पड़ रही है सर्दी नहीं धुंए के ये गर्दी है,
छींक ज़ुकाम और गला ख़राब, 
हालत बड़ी ही बे-दर्दी है। 
मस्त थी मस्तानों की ये दिल्ली...दिल्ली,
बन गई है, मरीजो की दिल्ली...दिल्ली!
शहर के हालात दिल को कचोट गए हैं,
‘राम’  लगता है आए नहीं
पुनः वनवास लौट गए है। 
पुनः वनवास लौट गए हैं।

~हेमंत राय। धुआं ही धुआं!!!

रात ढली भोर हुई, 
शांत दिल्ली फिर शोर हुई,
और, हवा मे ये जो नमी आने लगी है,
क्या कहना है चाहती, क्या बताने लगी है।
कि, नवंबर के माह का सर्द हवा का ‘मौसम’ आया है, 
या,खुशियां की दीवाली पर फूटे पटाखों के धुएं का जानलेवा ‘साया’ मंडराया है?
hemantrai5331

Hemant Rai

Bronze Star
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