किसी डोर के बंधन से बंधा नहीं रहा, किसी चकराती चकरी से जुड़ा नहीं रहा, ताउम्र ज़ंजीर परस्तों में लाख रहा बदनाम, कटी पतंग होना इतना भी बुरा नहीं रहा! हवाओं मॆं उड़ते हुए तार तार हो जाना, धूप में जलना, बारिश में पिघल जाना, कहीं से भी जीवन ज़रा भी अधूरा नहीं रहा, कटी पतंग होना इतना भी बुरा नहीं रहा!! ©Shubhro K #philosophy