एक कुत्ता बार बार उसे सूंघ कर आ रहा है, लंबी सी जीभ निकाल कर इधर उधर ताक हांफ रहा है जिज्ञासा से भरा सोच रहा है, सड़क पर ये आदमी साईकल के साथ लेटा है या सो रहा है, खून गर्म तो इसके सिर से बह रहा है पर ये जो लोग आसपास हैं इनका खून ठंडा क्यों हो रहा है... आवारा कुत्ता तो मैं हूं लेकिन कोई बाशिंदा रुक क्यों नहीं रहा है ये माहौल आवारा सा क्यों हो रहा है... 2005...8~9ish PM...Wintery weather...Punjabi Bagh Chowk...West Delhi...A man's body surrounded by few policemen not allowing anyone to be nearer... वहां असल में कोई कुत्ता नहीं था...वहां पर इंसान थे...हमसब इंसान..जानवरों से बदतर इंसान... "दीपक" कुत्तों से भी गये गुजरे हो तुम...कुत्ते भी अच्छे ही होते तुमसे...जानवर भी शरमाते होंगे जब कोई तुम्हे बोलता होगा जानवर हो "दीपक" तुम... (काश मैं कुत्ता ही होता)