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तबियत में ख़ुद्दारी ,सपनों से गुंजान आँखे, होठों पर

तबियत में ख़ुद्दारी ,सपनों से गुंजान आँखे,
होठों पर बस ख़ुदा की बन्दगी चलती है।
मेरी ये साफ़गोई....,
अक़्सर जमाने को बहुत खलती है। 
पाया-ए-तख़्त नही है मेरी जिंदगी,
न ख़ुल्द की ख़्वाहिश ज़ेहन में पलती है।
माँ-बाप की नेमतें कहे या दोस्तों की दुआएं,
लाख दुश्वारियां है फिर भी जिंदगी चलती है ।।



  (ख़ुल्द-स्वर्ग, पाया-ए-तख़्त -अर्थ/शक्ति का केंद्र )
🎀 Challenge-226 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। अपने शब्दों में अपनी ज़िन्दगी जीने का अंदाज़ लिखिए।
तबियत में ख़ुद्दारी ,सपनों से गुंजान आँखे,
होठों पर बस ख़ुदा की बन्दगी चलती है।
मेरी ये साफ़गोई....,
अक़्सर जमाने को बहुत खलती है। 
पाया-ए-तख़्त नही है मेरी जिंदगी,
न ख़ुल्द की ख़्वाहिश ज़ेहन में पलती है।
माँ-बाप की नेमतें कहे या दोस्तों की दुआएं,
लाख दुश्वारियां है फिर भी जिंदगी चलती है ।।



  (ख़ुल्द-स्वर्ग, पाया-ए-तख़्त -अर्थ/शक्ति का केंद्र )
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