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कभी हम साथ होते थे एक मकान दिन के छह घंटे बीत गए

कभी हम साथ होते थे 
एक मकान दिन के छह घंटे बीत गए बरस दर बरस 
जवाब नहीं दिया तूने, मैंने किया नमस्कार 
तेरा मुस्कराना तो था उम्मीद से कोसों दूर
तेरी उम्मीद से कहीं अधिक गए हम कर पर तू रहा वैसा ही क्रूर, क्रूर और क्रूर
तुझे लगा करता था जला रहा तू धूर
पर है सच सिर्फ़ यहाँ नहीं कोई था मजबूर
ज्ञात था कि तू आया नहीं है भेजा गया
जल्द ही चलता बनेगा मीलों दूर ।
औरों को नीचा दिखाने की कोशिश में करता रहा तू ग़लतियाँ, भूल गया तारीफ़ की छोटी सी उम्र
चंद चाँदी के चमचमाते चमचों से कोई न चल पाया कहीं दूर
कर्मवीर के पेट पर लात मार कोई न बन जाता बहादुर। १२३/३६५@२०२१  कभी हम साथ तो होते हैं पर साथ नहीं होते । क्या करें व्यक्तित्व ही ऐसा होता है, विचार ही नहीं मिलते हैं, पर काम एक तरह का करना पड़ता है... Original #workplace yreeta-lakra-9mba
कभी हम साथ होते थे 
एक मकान दिन के छह घंटे बीत गए बरस दर बरस 
जवाब नहीं दिया तूने, मैंने किया नमस्कार 
तेरा मुस्कराना तो था उम्मीद से कोसों दूर
तेरी उम्मीद से कहीं अधिक गए हम कर पर तू रहा वैसा ही क्रूर, क्रूर और क्रूर
तुझे लगा करता था जला रहा तू धूर
पर है सच सिर्फ़ यहाँ नहीं कोई था मजबूर
ज्ञात था कि तू आया नहीं है भेजा गया
जल्द ही चलता बनेगा मीलों दूर ।
औरों को नीचा दिखाने की कोशिश में करता रहा तू ग़लतियाँ, भूल गया तारीफ़ की छोटी सी उम्र
चंद चाँदी के चमचमाते चमचों से कोई न चल पाया कहीं दूर
कर्मवीर के पेट पर लात मार कोई न बन जाता बहादुर। १२३/३६५@२०२१  कभी हम साथ तो होते हैं पर साथ नहीं होते । क्या करें व्यक्तित्व ही ऐसा होता है, विचार ही नहीं मिलते हैं, पर काम एक तरह का करना पड़ता है... Original #workplace yreeta-lakra-9mba
reetalakra2626

REETA LAKRA

New Creator