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कुछ बोझ तले हम भी है दबे कैसे कह दे, हम नही थके ब

कुछ बोझ तले 
हम भी है दबे
कैसे कह दे, हम नही थके
बस्ते का भार 
बड़ता ही जा रहा
क्योंकि जरूरते बड़ गयी
और उतना मे नही कमा रहा
परिवार का तो छोड़ो 
मे तो अपनी जररूत भी पूरी नही कर पा रहा 
ये ख्याल नित मुझे मेरे ही 
जहन मे नकाबिल् बना रहा।

©Tanuja Upreti
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