इस रामराज से अच्छा तो रावण का राज ही अच्छा था सारी लंका थी सोने की मकान कोई ना कच्चा था दैत्य कुल कहो या पिशाच दानव हां राक्षस कहलाते थे तुम लोगो को तड़पाते हो वे लोगों को खाते थे राम राज्य में सब हो दुखी इससे तो मर जाना ही अच्छा था कदम कदम पर आज तुम देह नोच देते किसी देवी की अरे सीता को कभी खरोच अाई रावण का बाना सच्चा था इस रामराज से अच्छा तो रावण का राज ही अच्छा था जैसे फिरते निर्बल असहाय भूखे नंगे लंका में कोई भूखा नंगा न था जैसे होते आज हर जगह दंगे लंका में कोई दंगा ना था पढ़ लिख कर भी मूर्ख बने हम क्या फायदा इस ज्ञान का दैत्य होकर भी रावण प्रसिद्ध विद्वान था आज ठोकर देते मातपिता को रावण राज में सम्मान था इंद्रजीत गया रण में उसे अपनी मौत का ज्ञान था शूरवीर पराक्रमी था वो पिता का आदर सच्चा था इस रामराज से अच्छा तो रावण का राज ही अच्छा था सारी लंका थी ........................................ त्रेता युग का भारत तो स्वर्णयुग का भारत था स्नेह प्रस्पर निर्मल वायु जल भी हितकारक था सूखी प्रजा थी स्वच्छ तंत्र था संस्कृति की भरमार थी मगर आज यहां है लूट खसोट फैली त्वरित गति भ्रष्टाचार की आदर्श राजतंत्र हो आदर्श प्रजातंत्र हो मगर अब ये मुश्किल लगता है कलयुग के इस कालचक्र में हर सपना ओझिल लगता है लंका में तो एक विभीषण था आज हर घर विभीषण फैल राम भरत जैसा भ्रातस्नेह नहीं लक्ष्मण जैसा त्याग नहीं अब हर रिश्ते मट मैले है आडम्बर पाखंड , मतलब का बोला बाला है कोई कोई ही इंसान यहां अब सच्चा है इस राम राज से अच्छा तो रावण का राज ही अच्छा है तिरस्कार इष्या द्वेष हरदम बुजुर्ग बिना घर आगन सुने लगते है उदाहरण क्या भला सब के सब नमूने लगते है राज संचालन को सब दोष देते खुद भी सम्मिलित भ्रष्टाचारी है पढ़ेलिखे होकर अनपढ़ को दी राजतंत्र की जिम्मेदारी है कपिल कैसे हो कल्याण विश्व का भारत था विश्वगुरु क्या ये सच्चा था इस राम राज से अच्छा तो रावण का राज ही अच्छा था| इस रामराज से अच्छा तो रावण का राज ही अच्छा था - कपिल for more poetry follow my page on FB #कलम_का_सिपाही https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=442479373244141&id=442469223245156