कितना और क्या आत्मासात करना उचित है, सार्वदेशिक सार्वकालिक कुरीतियों,रूढ़िवादी की ढाह दी गयी डोल के पीछे अब भी एक अदृश्य दीवार है,जो इंगित करती है एक तानाशाही हवा में स्वास लेते उन उज्जवल भविष्य की ओर,क्या ही कामना कर सकते है उनके भविष्य की, जिनको अपना इतिहास ही तोड़ मरोड़ कर बताया गया हो और वर्तमान को काली पट्टी बांध कर उजरे भविष्य के वादे के पुल पर चलाया जाता हो,यह पुल जाता है ऐसी फरेब की नदी के ऊपर जहाँ पानी कभी नही निकलेगा! अध्यापक भी चकित हैं जिस प्रकार उनके समक्ष मिथ्य को वास्तविकता बना बेहद सुन्दर तरीके से पेश किया गया है,बस देर है तो उसे आत्मासात कर लेने की,पहले अध्यापकों को फिर छात्रों को ... जिसकी सत्ता उसका पाठ,ऐसा तय करने वाले कुर्सी की चाह में उन सामयिक चक्र को नकारते हुए भावी भविष्य को पायदान बना अपना मंच सँभालने को तैयार हैं,कब समझ पाए हैं पाठ्यक्रम को, वो तो बस तय कर पाए हैं नीरा,सर्वथा संवेदनहीन व स्वार्थी बन उस झूठी शिक्षा को! Rest in caption// ~ OPEN FOR COLLAB✨ #ATकोईकिताबयहनहींसिखाती कितना और क्या आत्मासात करना उचित है, सार्वदेशिक सार्वकालिक कुरीतियों,रूढ़िवादी की ढाह दी गयी डोल के पीछे अब भी एक अदृश्य दीवार है,जो इंगित करती है एक तानाशाही हवा में स्वास लेते उन उज्जवल भविष्य की ओर,क्या ही कामना कर सकते है उनके भविष्य की, जिनको अपना इतिहास ही तोड़ मरोड़ कर बताया गया हो और वर्तमान को काली पट्टी बांध कर उजरे भविष्य के वादे के पुल पर चलाया जाता हो,यह पुल जाता है ऐसी फरेब की नदी के ऊपर जहाँ पानी कभी नही निकलेगा! अध्यापक भी चकित हैं जिस प्रकार उनके समक्ष मिथ्य को वास्तविकता बना बेहद सुन्दर तरीके से पेश किया गया है,बस देर है तो उसे आत्मासात कर लेने की,पहले अध्यापकों को फिर छात्रों को ... जिसकी सत्ता उसका पाठ,ऐसा तय करने वाले कुर्सी की चाह में उन सामयिक चक्र को नकारते हुए भावी भविष्य को पायदान बना अपना मंच सँभालने को तैयार हैं,कब समझ पाए हैं पाठ्यक्रम को, वो तो बस तय कर पाए हैं नीरा,सर्वथा संवेदनहीन व स्वार्थी बन उस झूठी शिक्षा को! आत्म-संवेदनहीन हो या कहें मार चुके अपनी नैतिकता को जो आत्मा है देश-सेवक की वो खादीधारी/हुकूमत जो नैतिकता पर किसी विद्यालय में जाकर सीख दे सकते हैं,परन्तु कभी सच्ची सीख ना दे पाएंगे अपने आचरण द्वारा... इस परिवर्तित शिक्षा के प्रति उनकी संवेदनहीनता (जो एक दिन प्रतिक्षेप में तब्दील हो जानी है )तथा उन चिंतित मुद्रा में डूबी निष्पक्ष व विवश प्रिंटिंग प्रेसों के प्रति, जिनकी पहली प्रतियां उद्देश्यहीन बन चुकी हैं किसी के उद्देश्यपूर्ति हेतु, जिसका उद्देश्य है अपना सिक्का चलाना और वही ज्ञान अंत में दिशाहीन साबित होता दिखता है जिसको कल के सुनहरे कहे जाने वाले भविष्य के मन में उतार दिया गया है जिसकी न कोई वैक्सीन है ना ही कोई मेडिकेशन!#बदलतापाठ्यक्रम • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ✨