कहाँ चला मानव तू, क्यों कर रहा है जुल्मों अत्याचार, विषधर भी शरमा जाये, देखकर तुम्हारा कुटिल व्यवहार। सच झूठ की पहचान नहीं, यहाँ तो हर चेहरे पर नकाब है, मानवता जाने कहाँ खो गई, त्यागी संस्कृति और संस्कार, समय सीमा : 14.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,