“गोमुख से बंगाल की खाड़ी तक की मेरी यात्रा” अनुशीर्षक में गंगा किनारा बचपन से ही देखा रहा मेरा गुरुकुल सुबह–ए–बनारस कितने दिन और शाम हमने गुजारे बैठ सब दोस्त गंगा किनारे कभी दशाश्वमेध कभी अस्सी कभी कुल्हड़ चाय करते मस्ती और कभी पहलवान की लस्सी पूरी हुई पढ़ाई छूटा लड़कपन