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कितना अनुभूतिपूर्ण था वह क्षण भर का आलिंगन! कितने

कितना अनुभूतिपूर्ण था वह क्षण भर का आलिंगन!
कितने संतोष से भरा था!
नियति ने अज्ञात भाव से 
मानो लू से तपी हुई वसुधा को 
क्षितिज के निर्जन में सायंकालीन शीतल आकाश से मिला दिया हो।

(जय शंकर प्रसाद कृत ध्रुवस्वामिनी)

©Versha Kashyap
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