बेक़रारी बढ़ती जाती है इंतज़ार में- मिलने की तड़प सही नहीं जाती प्यार में। कहाँ कहाँ नहीं ढूंढ़ा पर कहीं मिला नहीं। जब देखा तो रब दिखता है यार में। सन्नाटा पसरा परिंदे भी दिखते नहीं। शायद ज़हर मिल गया है बयार में। अपनों से मिलने का मन तो बहुत है! मिलें भी तो कैसे जोख़िम है बाज़ार में। सिर को पकड़ कर बैठ गए 'पाठक' जब देश के हालात देखे अख़बार में। ♥️ Challenge-550 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।