मुँह मोड़ चुका था मोहब्बत से, लेकिन मोहब्बत कहाँ पीछा छोड़ती हैं, कहीं एक चेहरा दिखा है धुन्ध में, अब नजरें उसको ढूंढती दौड़ती हैं, कहीं से आवाज ही आ जाए उसकी, के दौड़ लगाऊँ उसकी और, थाम लूँ उसका हाथ धुन्ध में ही, और अपनी खिंच के पूछूं कहाँ चली मेरे दिल की चोर। मुँह मोड़ चुका था मोहब्बत से, लेकिन मोहब्बत कहाँ पीछा छोड़ती हैं, कहीं एक चेहरा दिखा है धुन्ध में, अब नजरें उसको ढूंढती दौड़ती हैं, कहीं से आवाज ही आ जाए उसकी, के दौड़ लगाऊँ उसकी और, थाम लूँ उसका हाथ धुन्ध में ही, और अपनी खिंच के पूछूं कहाँ चली मेरे दिल की चोर।