ख्वाहिशें अब भूल गया हूं जो पिता के पैसे से पूरे होते थे अब जरुरते पूरी करते दिन बीत जाता है सुकून नही है जिंदगी में जरूरतों ने सुकून छीन लिया है शिकायत भी अब किससे करें सुनने वाला भी मैं ही हूं ऐ वक्त जरा थम कर चल कुछ एहसान चुकाने बाकी जरूरतों ने एहसान मंद बना दिया ©Anurag Vishwakarma #जरूरतों ने #एहसानमंद बना दिया शिकायत भी अब किससे करें #मालिक भी मैं हूं #नौकर भी मैं हूं