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बचपन और पहला दोस्त मिट्टी की चार ईंटे ।। यंहा वंहा

बचपन और पहला दोस्त मिट्टी की चार ईंटे ।।
यंहा वंहा से चुनकर लाया हुआ 
पेपर कागज कचरे सा -);;
ये थी मेरी रसोई घर ।
बहुतछोटी थी मैं बहुत ज्यादा 
3 या 4 कक्षा में ।।
एक खुला सा बडा मैदान था घर के सामने 
कुछ दिनो से बंजारे रहने आए थे यंहा ।।
कुठ नया बन रहा था उसी के मजदूर थे ।।
रोज देखती थी उनकी औरते और मर्द साथ काम पे निकल जाते थे ।।
उनके बच्चे मिट्टी मे खेलते रहते थे ।।मौज से मजे से ।।

ये सब रोज का था ईसलिए आम लगता था 
एक दिन बहुत मायूस दिखे  वो बच्चे ।।
खेल भी नही रहे थे ।।
मुझे न बचपन से ही हर बात जान ने का बडा 
शौक रहता है ।।
पुछ लिया मैने 
" ऑए तूम क्यु दुखी हो ।।खेलो न खेल क्यु नही रहे ??
गरीब बेचार चुप रहे ।।जवाब न दिया ।।
"बाड में जाओ "कहकर 
मैं निकल गई ।।।
पर मुझे चैन न आया ।।।क्यूकि रो रहे थे यार दो तीन छोटे छोटे बच्चे ।।
अब मैं अपने असली रूप में आ गई और गुस्से से पुछा ।
"बताते हो के नही "??। नही तो कल ही तूम लोगो को भगा देंगे यंहा से देख लेना ।।मेरे प्पा सेकर्टरी है 
सोसायटी के हमारा ही राज चलता है ।।""

मेरी धमकी काम कर गई ।।
" हमारी मां रोज हमारे लिए खाना बनाके जाती है 
रात को बारिश की वजह से सुबस चुला जला ही नही 
अब हमे बहौत भुख लगी है ।।।" 

है भगवान ।मैं भले कितनी भी शैतान थी बचपन में पर ईस तरह किसी को भुखा नही देख सकती थी ।।

" कौन कौन क्या लाएगा" 
मेरी टोली से पुछा ?? 
आता जाता हम मे से किसी को कुछ नही था 
पर तैयार सारे हो गए थे।।।

" मीना मैं आलू लेके आती हु ।तु 
पौंआ ले आ ।।सीमा राई और हरा धनिया ले आ
तेल मसाले सब एक एक लाओ ।।

मिट्टी की चार ईंट का चुल्हा ।।
थोडा सा गासलेट ।बहुत सारा 
कचरा ।घर के पेपर ।।।

मेरी अगवानी ।।।
तेल मे राई डाली ।।जल गई 
" अरे ईसने तो जला दिया "" उसने कहा 

"हा तो तू मत खाना" बोल दिया मैने  ।।मेरी हुशारी तो बचपन से ही 
सुबानअल्लाह है ।।

मुजे आज भी याद है ।।पुरे कच्चे थे आलू 
नमक थोडा ज्यादा था 
और ।।।
पौंआ नही ।।पुरे पौंआ का हलवा बनाया था मैने।
मुझे कूया पता पानी नही डलता ??

खैर साथ मे आलु भी उभाले ।।मैं 
टीम लीडर थी तो घर के सारे आलू उठा लायी थी ।।
हमने उनके साथ बैठकर थोडा थोडा खाया ।।
वो सचमुच बहुत भूखे थे यार ।।।
हाथ से भर भर के ईतना कच्चा पक्का 
खाना खा गए ।।।।

उनहोने खाना खाया 
और 
हम सभने मार मम्मी की ।।।
अरे हा ।।
सच्ची में ।।
हमारी सोसायटी "तारक महेता का उलटा 
चश्मा " जैसी थोडे ही थी ।।।
ईसलिए सबको मार मिली ।।
मुझे अपनी मम्मी की मार और बाकी सारी 
म्मियो की डांट ।।
After all leader जो ठहरे अपुन ।।

पहली रसोई पे हमेशा ।।
पारितोषक ।।या खरची मिले ।एसा जरूरी नही 
कभी कभी मार डांट भी मिलता है ।।
समझा ।।।
बचपन और पहला दोस्त मिट्टी की चार ईंटे ।।
यंहा वंहा से चुनकर लाया हुआ 
पेपर कागज कचरे सा -);;
ये थी मेरी रसोई घर ।
बहुतछोटी थी मैं बहुत ज्यादा 
3 या 4 कक्षा में ।।
एक खुला सा बडा मैदान था घर के सामने 
कुछ दिनो से बंजारे रहने आए थे यंहा ।।
कुठ नया बन रहा था उसी के मजदूर थे ।।
रोज देखती थी उनकी औरते और मर्द साथ काम पे निकल जाते थे ।।
उनके बच्चे मिट्टी मे खेलते रहते थे ।।मौज से मजे से ।।

ये सब रोज का था ईसलिए आम लगता था 
एक दिन बहुत मायूस दिखे  वो बच्चे ।।
खेल भी नही रहे थे ।।
मुझे न बचपन से ही हर बात जान ने का बडा 
शौक रहता है ।।
पुछ लिया मैने 
" ऑए तूम क्यु दुखी हो ।।खेलो न खेल क्यु नही रहे ??
गरीब बेचार चुप रहे ।।जवाब न दिया ।।
"बाड में जाओ "कहकर 
मैं निकल गई ।।।
पर मुझे चैन न आया ।।।क्यूकि रो रहे थे यार दो तीन छोटे छोटे बच्चे ।।
अब मैं अपने असली रूप में आ गई और गुस्से से पुछा ।
"बताते हो के नही "??। नही तो कल ही तूम लोगो को भगा देंगे यंहा से देख लेना ।।मेरे प्पा सेकर्टरी है 
सोसायटी के हमारा ही राज चलता है ।।""

मेरी धमकी काम कर गई ।।
" हमारी मां रोज हमारे लिए खाना बनाके जाती है 
रात को बारिश की वजह से सुबस चुला जला ही नही 
अब हमे बहौत भुख लगी है ।।।" 

है भगवान ।मैं भले कितनी भी शैतान थी बचपन में पर ईस तरह किसी को भुखा नही देख सकती थी ।।

" कौन कौन क्या लाएगा" 
मेरी टोली से पुछा ?? 
आता जाता हम मे से किसी को कुछ नही था 
पर तैयार सारे हो गए थे।।।

" मीना मैं आलू लेके आती हु ।तु 
पौंआ ले आ ।।सीमा राई और हरा धनिया ले आ
तेल मसाले सब एक एक लाओ ।।

मिट्टी की चार ईंट का चुल्हा ।।
थोडा सा गासलेट ।बहुत सारा 
कचरा ।घर के पेपर ।।।

मेरी अगवानी ।।।
तेल मे राई डाली ।।जल गई 
" अरे ईसने तो जला दिया "" उसने कहा 

"हा तो तू मत खाना" बोल दिया मैने  ।।मेरी हुशारी तो बचपन से ही 
सुबानअल्लाह है ।।

मुजे आज भी याद है ।।पुरे कच्चे थे आलू 
नमक थोडा ज्यादा था 
और ।।।
पौंआ नही ।।पुरे पौंआ का हलवा बनाया था मैने।
मुझे कूया पता पानी नही डलता ??

खैर साथ मे आलु भी उभाले ।।मैं 
टीम लीडर थी तो घर के सारे आलू उठा लायी थी ।।
हमने उनके साथ बैठकर थोडा थोडा खाया ।।
वो सचमुच बहुत भूखे थे यार ।।।
हाथ से भर भर के ईतना कच्चा पक्का 
खाना खा गए ।।।।

उनहोने खाना खाया 
और 
हम सभने मार मम्मी की ।।।
अरे हा ।।
सच्ची में ।।
हमारी सोसायटी "तारक महेता का उलटा 
चश्मा " जैसी थोडे ही थी ।।।
ईसलिए सबको मार मिली ।।
मुझे अपनी मम्मी की मार और बाकी सारी 
म्मियो की डांट ।।
After all leader जो ठहरे अपुन ।।

पहली रसोई पे हमेशा ।।
पारितोषक ।।या खरची मिले ।एसा जरूरी नही 
कभी कभी मार डांट भी मिलता है ।।
समझा ।।।