यूक्रेन पर चढ़ाई करने के बाद रूस ने जिस तरह उससे बातचीत करने की इच्छा जताई है उससे यही संकेत मिला कि देर से ही सही उसे यह समझ आया कि यदि लड़ाई लंबी खींची तो उसे लेने के देने पड़ सकते हैं यूज कोई याद रहता तो बेहतर होता कि अफगानिस्तान में अपना अध्यापक जताने की कोशिश में ही सोवियत संघ का विकराल हुआ था फिलहाल यह कहना कठिन है कि भूत और युगीन के बीच कोई सार्थक बातचीत हो पाती है या नहीं देती लिए समय की मांग की बहुत जरुरत है वार्ड से ही मसले का हल निकलेगा जंग से मसले सुलझते नहीं बल्कि वो लगते हैं और आज युग में तो उसे सारी दुनिया कहीं अधिक प्रभावित होती यही एक दिखते हैं कि उधर यूज़ यूक्रेन हम लेने विश्व शांति को खतरे में डालने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के समक्ष तब गंभीर संकट खड़ा कर दिया है जब वह कोविड-19 से ऊपर ही रही थी सच तो यह है कि खुद रूस की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा संकट पैदा हो गया है इस बार उसके लिए अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के प्रतिबंध का सामना करना आसान नहीं होगा क्योंकि उसे अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग तंत्र से भी बाहर करने की तैयारी हो रही है मेरी रूस भारत के जरिए समस्या का समाधान निकालने के प्रति वास्तव में गंभीर है तो उसे यूक्रेन पर हमला रोकने होंगे इसका कोई मतलब नहीं है यूक्रेन को बातचीत की दावत देने के साथ ही उसे दवाई करने में भी जुटा रहे फिलहाल वो यूं ही कर रहा है ऐसे में इसके रातों के प्रति संदेह होना स्वाभाविक है जो कि वर्तमान परिस्थिति में यूक्रेन के लिए रोज पर भरोसा करना कठिन है ©Ek villain #रूस के इरादे ठीक नहीं #Rose