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सघन-सा वृक्ष यूँ बचपन में सड़ रहा क्यूं है... अभी-स

सघन-सा वृक्ष यूँ बचपन में सड़ रहा क्यूं है...
अभी-से बोझ दरख्तों पे पड़ रहा क्यूं है...
ज़मीन-ओ-आसमाँ तेरे लिए भी है बाक़ी
बेड़ियाँ पावों में ज़माना जड़ रहा क्यूं है...
बेतरह छीन के कैसे तेरे हिस्से की ख़ुशी.
यूँ अपने ताज में सितारे जड़ रहा क्यूं है।
तुम्ही तो हो धरा पे जैसे स्वयं सृष्टि हो
माहौल तेरे लिए ही बिगड़ रहा क्यूँ है।।
किसी के बाग़ की उन नन्ही-नन्ही कलियों को,
हवस के जाल में कोई जकड़ रहा क्यों है।। #बालिकादिवस #राष्ट्रीय_बालिका_दिवस   #बचपन #दरख़्त #yqbaba #yqdidi #ग़ज़ल #mythoughts
सघन-सा वृक्ष यूँ बचपन में सड़ रहा क्यूं है...
अभी-से बोझ दरख्तों पे पड़ रहा क्यूं है...
ज़मीन-ओ-आसमाँ तेरे लिए भी है बाक़ी
बेड़ियाँ पावों में ज़माना जड़ रहा क्यूं है...
बेतरह छीन के कैसे तेरे हिस्से की ख़ुशी.
यूँ अपने ताज में सितारे जड़ रहा क्यूं है।
तुम्ही तो हो धरा पे जैसे स्वयं सृष्टि हो
माहौल तेरे लिए ही बिगड़ रहा क्यूँ है।।
किसी के बाग़ की उन नन्ही-नन्ही कलियों को,
हवस के जाल में कोई जकड़ रहा क्यों है।। #बालिकादिवस #राष्ट्रीय_बालिका_दिवस   #बचपन #दरख़्त #yqbaba #yqdidi #ग़ज़ल #mythoughts