जिंदगी बहुत कुछ सिखा देती है,अपने घर से दूर कर हमें ज़ीने का सलिका सिखा देती है; जिनकी दांत-फटकार मिलने के बाद भी हम काम नहीं करते थे, अब उन्ही के दांत पाने का इन्तज़ार-ओ-शब्र सिखा देती है; घर पर पसंदीदा खान-पान की ख्वाहिशे हम माँ को कर देते थे, पर अब माँ की हाथों की "खिचड़ी" नसीब होजाए तो हमें जन्नत से उतरी प्रसाद सी लगती है; शौहरत-ओ-दिखावे से सने मुसकुराते चेहरे ठेस पहुंचाते हैं दिल को, हमें वो छोटे शहरों में दिलों को दिलों से जोड़ने वाले मोहब्बत के रिश्ते आज के ज़माने में दिलरुबा लगती है; हफ्ते की छुट्टियों में हम दादी-नानी-मामी-मौसी-ओ-रिशतेदारों से मिला करते थे, आज वो छुट्टी आती तो है मगर मिलने का इन्तज़ार लम्बी छुट्टियाँ बेरूखी से छीन कर ले जाती है; आजकल महीने भर के पकवान नानी बनाकर बस्ते में बाँध देती है, ख़त्म हो जाती है ख़ुराक तब दिल बेबसी से उनके आशीर्वाद को पाने की जंग में मन से लड़ जाती है; यादें ताज़ा हो जाए दर्द-ए-लमहों के वक़्त तो वापस लौटने की चाहत बढ़ा देती है, घर आने की चाहत आज भी अकेले कमरे में तरसती है घर तुम्हारी याद आज भी बहुत आती है । आदित्य कुंवर #nojoto #love #parents #memories #yad #ghar