पाक हर नज्म कर लेंगे कल को हर मर्ज की दवा कर लेंगे बिन तेरे जीए हैं हफ्ते, अब महीने या अरसे का भी गुजारा कर लेंगे वक़्त-बेवक़्त ख़ामोशी का बसर बहती नदी के ठहराव सी होती हैं संदल जो नज़्दीक थी आज मंगल सी लगती हैं इस्तक़बाल करना चाहते थे फिरसे उन पलों का वो पहली वाली तकरार और उस मीठे आभास का रिश्ते अपने तरफ से जोड़ने की कोशिश की थी पूरज़ोर से रूह बाँधने की कोशिश की थी मांजे की डोर से सोचा था इन धागों को कोई ना काट पायेगा पर भूल सा गया था, ये मांजा है और ये दोनों को काट खायेगा दिए, दिए जो लगाते थे मंदिर में उन दिनों लगा आये थे वही गिरजा के देहलीज़ में अब येसू का शराब रात के सवाब सी बन गयी हैं महाकाल का धुँआ रात की हवा सी बन गयी है #Intercastes_unwound