क्या लिखूँ इतना ही उलझा हुआ है भीतर मन इतना ही शाखित या कहूंगी इससे भी कहीं ज्यादा बिखरा हुआ है प्रेम है केवल जो इन शाखाओं पर पुष्प ,कलियां खिलायें हुये है कुछ स्मृतियां है जिनकी सूखी टहनियां अब भी शाखाओं से जुड़ी हुयी है जिन पर कुछ सूखे फूल भी है जो कभी कभी अपनी गन्ध बिखेर जाते हैं और मेरे ह्रदय पर लगी कुम्हलायी कलियां खिल उठती है उस क्षण लगता है कि इस जीवन में जीवन अब भी शेष है। ©Astha gangwar © #aasthagangwar