|| श्री हरि: ||
24 - सुलझाता ही है
कन्हाई को अपनी मोटी सुनहली बिल्ली बहुत प्रिय है। यह भी श्माम के घर में आते ही 'म्याऊं-म्याऊं' करती कहीं न कहीं से कूद आती है और फिर मोहन के आगे-पीछे घूमती रहेगी। अपना शरीर पूंछ उठाये रगड़ती रहेगी।
अत्यन्त सुकुमार रोमावली की यह बिल्ली स्वभाव में भी अपनी पूरी जाति से भिन्न है। कभी किसी गोरसभाण्ड में मूख नहीं डाला इसने और मूख डाले क्यों? इसे दूध-दही, माखन न मिलता हो तो मुख डाले। बालक ही इतना खिलाते हैं कि मैया अथवा दासियों को इसकी ओर ध्यान देने की आवश्यकता कम ही पड़ती है।
कन्हाई गोचारण को गया और यह कहीं एक कोने में छिप कर बैठ जायेगी। अपने पञ्जे चाट-चाटकर मुख पोछती रहेगी अथवा ऊंघती रहेगी।मयूर ही नहीं, कपोतों तक से इसकी मित्रता है। वे भी इसकी पीठपर चाहे