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White रात का सारा काम ख़त्म करके रोज़ाना की तरह

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रात का सारा काम ख़त्म करके रोज़ाना की तरह बेड पर जाने से पहले लाइट बंद की। सोने की बहुत कोशिश की। नींद का दूर दूर तक नाम न था। मन बहुत बेचैन होने लगा। ऐसा लग रहा था मानों फूलों के बिछौने में कांटे लगे हो और ज़रा सा सांस लेने पर वो कांटे बदन को चुभ रहे हों। 

घर के पास रेलवे ट्रैक था। ट्रेन का आना जाना लगा रहता था, लेकिन कभी गौर से सोचा ही नहीं। आज उसकी हूक से ऐसा लगा जैसे ज़िन्दगी एक ट्रेन की तरह है। दुख - सुख के डिब्बे आपस में जुड़े हैं। अपने - अपने स्टेशन पर उतरते - चढ़ते यात्री वो क्षण है जिन्होंने आना है और दो घड़ी रुक कर अपनी छाप छोड़कर फिर चले जाना है। उलझी बिछी पटरियां ऐसे उलझा के रखती हैं। मानो एक पहेली हो जो कभी सुलझ नहीं सकती।

यह सब जानने के बावजूद ज़िंदगी एक ठौर चाहती है। डिब्बे बेशक अस्त व्यस्त हो जाए। ज़िन्दगी की ट्रेन को कोई असर न हो। यात्रा कब कहां शुरू हुई और कहां ख़त्म होगी। इससे कोई वास्ता न हो। कितने यात्री सफर कर रहें हैं। उन्हें कहां किस स्टेशन पर उतरना है। इसकी भी कोई खबर न रहें। कितनी ही उलझी पटरियां बिछी हो लेकिन उसकी पटरी कौन सी है जो उसे मंजिल तक पहुंचाएगी, वह बख़ूबी जानती हो।

©Shikkha Sharrma
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Shikkha Sharrma

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