नीलाम कर दो मुझे मैं कहीं न जाऊंगा, टूटी हुई कश्ती है दरिया पार करना है मरम्मत न करवाऊंगा। प्यासा हूं मुद्दतों पर समंदर तेरे बस में है, खुद्दारी हम में भी है एक कतरे की अर्जी न लगाऊंगा। महफ़िल में तेरे चाहने वालों के पैर कट गये है, फ़ुरसत में हूं पर बैसाखियां न बनाऊंगा। महफूज हूं बस्तियों में शहर की चाहत नहीं, विरासत में बुजुर्गों की जमीन है पर ईमारत न बनाऊंगा। तिनके चुन रहे थे आशियाने के लिए, शैलाबों का डर है यहां ठिकाना न बनाऊंगा। mr javed