वक़्त ने ज़ख्म दिए ,ज़ख्म ने सम्हाला है । ग़ैर तो गैर हैं कब हमने ही सम्हाला है । कैसा मंज़र ये काले बादलों ने लाया है । घर है टूटे हुए ना पास में निवाला है । एक था रंग मोहब्बत का सारी बस्ती में । तुमने क्यों रंग सियासत का रात डाला है । गिर गए लोग किस कदर देखो । सिक्कों में खुद को तौल डाला है । हो गई शाम घर "प्रमोद" चलो । वक़्त है राह में उजाला है । @ प्रमोद