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खाली रातों के सन्नाटे ख़ामोशी से बैठी सुनती रही अक

खाली रातों के सन्नाटे ख़ामोशी से बैठी सुनती रही
अकेली अनछुई रातों में उसके ख़्वाब बुनती रही
कहना बहुत कुछ था गर मिलती कभी उससे
पर अपने ही दायरों में मैं उम्र भर सिमटी रही

©शब्दों की जादूगरनी
  #दायरे