पथिक कोरोना के दौरान मैं जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ आते जाते सूनी साफ़ सुथरी सड़कें देखता रहा। मेरा मन पथिक सूर्य की सतरंगी किरणें देखता रहा दूर क्षितिज के पार हरी भरी वसुंधरा और नीले आकाश का मधुर मिलन देखता रहा। ढाली ढाली लय में चहकते पक्षियों की सुप्रभात महकते फूलों पर भौंरें गुनगुनाते देखता रहा। रंग बिरंगी इठलाती तितलियां स्वच्छ बहती हवा मन पथिक इस अद्भुत सौन्दर्य को रोज़ देखता रहा। हसीन वादियों संग भावुक मन भी गुनगुनाता रहा मेरे मनोमस्तिष्क पर अनायास ज़िंदा होता है महाकवि रामनरेश त्रिपाठी जी का 'पथिक' जो प्रकृति के अद्भुत सौन्दर्य को मंत्र मुग्ध देखता रहा। चंद्रमा की रोशनी टिमटिमाते तारों की सुंदरता में मैं मेरी प्रेयसी को दुल्हन के लिबास में देखता रहा। चंद सांसों के लिए कोरोना में जिन्हे मोहताज देखा शुद्ध हवा पानी के लिए अस्पताल में जूझता देखा लॉकडॉउन हटते ही पर्वतों को छलनी देखता रहा। क्षणिक लाभ मोह माया में मानव फिर भटकता रहा मेरा मन पथिक सुंदर प्रकृति के लिए बिलखता रहा। जब सागर किनारे गिरती उठती लहरें मैं गिनता रहा जब बरसते बादलों पर बैठकर विचरण करता रहा। कितनी प्यारी ,उज्ज्वल , निश्चल एवं मनभावन थी पेड़, पर्वत, समुद्रतल से प्रकृति की प्रेम लीला का मन पथिक एक अक्षर बनने के लिए सिसकता रहा। ** डॉ लाल थदानी #अल्फ़ाज़_दिलसे 8005529714 #विश्वपृथ्वीदिवस #WorldEarthDay #SaveEarth #TreePlantation #SaveLives #liveandlovelifebylal