*बे* यूँ ही बैठी थी, मेरी दोस्त आई और बोली, *अबे!* का कर रही *बे*.. सच अजब लगा.. उसका ये *बे* कर करे बोलना.. और दिमाग सोचने लगा.. कितना बकवास होता है न ये *बे* शब्द भी.. जहां भी लगता है वहीं या तो दर्द देता है या बेड़ा गर्क कर देता है.. परवाह में लगे तो *बेपरवाह* बना देता है, ख्याल में लगे तो किसी को *बेख्याल* कर देता है दखल में लगे तो *बेदखल* कर देता है फिक्र में जो लगे तो *बेफ़िक्र* कर दर्द से दिल भर देता है.. मुरव्वत में लगे तो *बेमुरव्वत* बनाये, वफ़ा में लगे तो *बेवफा* बना दे.. शर्म में लगे तो *बेशर्म* बना लाज ही छीन ले.. गैरत में लगे तो *बेगैरत* बना दे.. और नाम में लगे तो *बेनाम* बना दे, पहचान ही छीन ले.. और तो और अपनी जान में ही लगे तो, सांस छीन *बेजान* बना देता है.. सच ही है ये *बे* शब्द बेड़ा गर्क कर देता है, मन को दर्द से भर देता है... ©Lata Sharma सखी #बे