तुम बिन सजनी हम बंजारे। भटके बन बन मारे मारे। प्रेम सुधा बरसा दो सजनी। ह्रदय मरुघर बाट निहारे। अधर गुलाबी कन्चन काया। हिरनी जैसे नयन तुम्हारे। चतुर चपल नैनन से हम पर। बाण चलाये सजन हमारे। प्रेम अतुर नैनन से भड़के। तन मन में अग्नी के धारे। बाहुपाश में मचले मनवा। धीर धरो कछु प्रीतम प्यारे। मादक रुत में कामुक हिरनी। भटके नंदन बन में सारे। प्रेम आलिंगन में कसने को। कस्तूरी की गंध पुकारे। बिरहन तरसे सेज सजाये। नैन बिछाये दरस निहारे। सब के साजन आ गए सखियों। कब आऐंगे सजन हमारे। तुम बिन सजनी हम बंजारे। तुम बिन सजनी हम बंजारे। डॉ तलत खान "साहिब" कोटा राजस्थान साहिब की क़लम से! हिंदी शायरी