दफ़्तर से आते वक़्त पांडे जी ने देखा कि उनका बेटा अपने कुछ लफंगे दोस्तों के साथ, आती जाती लड़कियों को छेड़ रहा था. पांडे जी को बहुत दुख हुआ, घर पे जब वे अपने बेटे की क्लास ले रहे थे तब अचानक उनका बेटा चिल्लाया, " वह अंसारी अंकल का लड़का भी तो लड़की छेड़ता है, उसको तो आप कुछ नहीं कहते?" !! पांडे जी समझ नहीं पाए कि उनका बेटा इतनी स्टुपिड बातें कैसे कर सकता है? कुछ दिनों बाद उनका लड़का सभी सब्जेक्ट्स में फेल हो गया तब पांडे जी ने फिर अपने बेटे को डांटा. इस बार भी बेटे का वही जवाब, "वह अंसारी अंकल का लड़का भी तो फेल हुआ है, उसको तो आप कुछ नहीं कहते?" अख़बार में अख़लाक़ की मौत की खबर पढ़ते हुए जब पांडे जी ने अपनी पत्नी से दुख व्यक्त करते हुए कहा भारत में अब इनटॉलरेन्स बढ़ने लगा है, तब पास बैठे उनके बेटे ने कहा, "पाकिस्तान, बांग्लादेश या इराक़ में तो हिंदुओं का और भी ज़्यादा बुरा हाल है, उसमें तो आपको कभी इनटॉलरेन्स नहीं दिखा?" शायद इस समस्या से अकेले पांडे जी परेशान नहीं हैं, बल्कि हम सभी हैं. हमारे आसपास भी कुछ ऐसे लोग हैं जो हमेशा दूसरों की कमियों का उदाहरण देकर अपनी कमियों को छुपाना चाहते हैं. अगर हमारे अपने परिवार में कोई कमी होगी तो उसको दूर करने की ज़िम्मेदारी भी हमारी अपनी ही होगी. दूसरों के परिवार की कमियों का उदाहरण दे कर हम अपनी कमियों को कभी दूर नहीं कर सकते. जब मैंनें कठुआ बलात्कार के ऊपर लिखा, तब कुछ लोग पांडे जी के बेटे की तरह चिल्लाने लगे. कहने लगे मस्जिदों और मदरसों में होने वाले बलात्कार के ऊपर भी लिखो. भाइयों, बलात्कार मंदिर में हो या मस्जिद में, वह हमेशा निंदनीय ही रहेगा. आप कठुआ वाली घटना के साथ साथ मदरसे वाली घटना, दोनों का समान भाव से विरोध करते हैं तो मैं आपके साथ हूँ. लेकिन आप मदरसे वाली घटना का विरोध सिर्फ़ इसलिए करते हैं क्योंकि आपको कठुआ की घटना का काउंटर या जवाब मिल गया है, तो मैं आपके साथ हरगिज़ नहीं हूँ. अपना अजेंडा पूरा करने के लिए आपको पांडे जी के बेटे जैसे बहुत लोग मिल जाएँगे. और रहा सवाल पांडे जी का, तो उनकी नज़र में तो सभी बलात्कार समान रूप से ग़लत हैं चाहे जगह कोई भी हो, बलात्कारी का मज़हब कोई भी हो !! #justiceForAsifa #justiceForGeeta