कर दिया था महबूब के कदमों में जिन्दगी न्योछावर, पर उसने अपनी नेह को है ठुकराया, छोड़कर मेरी नेह पाक मोहब्बत को, उन्होंने किसी और के बांहों में अपना आशियाँ सजाया। कैसे भूल जाऊँ मैं अपने आशिक़ दिलदार को, मैंने ख़ुद को भी भूल कर उसे बेइंतहा चाहा था, तोड़कर मेरे हसी ख़्वाब वो, मुझे तन्हाकर, किसी गैर को है उसने अपनी जिन्दगी बनाया।। ♥️ Challenge-598 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।