White नहीं हलाहल शेष, तरल ज्वाला से अब प्याला भरती हूँ। विष तो मैंने पिया, सभी को व्यापी नीलकंठता मेरी; घेरे नीला ज्वार गगन को बाँधे भू को छाँह अँधेरी; सपने जमकर आज हो गए चलती-फिरती नील शिलाएँ, आज अमरता के पथ को मैं जलकर उजियाला करती हूँ। हिम से सीझा है यह दीपक आँसू से बाती है गीली; दिन से धनु की आज पड़ी है क्षितिज-शिञ्जिनी उतरी ढीली, तिमिर-कसौटी पर पैना कर चढ़ा रही मैं दृष्टि-अग्निशर, आभाजल में फूट बहे जो हर क्षण को छाला करती हूँ। ©"SILENT" #Sad_shayri Nîkîtã Guptā