उसे पसंद नहीं मेरे खुले बाल वो जिद करता है उन्हें बंधने की वो कहता है, उसे मेरे जूड़े की बेतरतीबी पसंद है वो मुझे बाँधना चाहता है इसी बेतरतीबी में... मानो कोई ख़ुशबू है सौंधी सी और कोई डोर है नाजुक सी मैं ख़ुशबू में डूब भी नहीं पाती और ये डोर खिंचती ही जाती है.... sur... बेतरतीबी....