कभी इससे ,कभी उससे दिल सबसे लगा बैठे और जिसने हमे चाहा ,हम उसी को रुला बैठे कभी सावन, कभी पतझर हर मौसम बिता बैठे और जो दो पल सुकूँ देता, हम उसी को गवां बैठे झूठे हर कसमे, हर वादे निभा बैठे और जो सच्चाई की थी मूरत, हम उसको भुला बैठे जो चिंगारी थी घर जलाने को, हम उसको जला बैठे और जिससे रौशन गलियारा था हम उसी को बुझा बैठे जो कस्ती डूबती मझदार में उसमे जा बैठे और जो सैलाब से मुझे बचाती, हम उसी को डूबा बैठे जँहा पर शोर था हम घर वंही बना बैठे और जिसके गीत मुझे सुलाते, चुप उसी को करा बैठे Tinku# भूल हुई हमसे