हिज्र-ए-रंजिश-ए-तक़रार को मिटा जरा यह दायरा तोड़ दो, हम चश्म-ए-गुल बिछाये बैठे तेरे लिए जरा,यह ज़िद्द छोड़ दो, देखो कहिं ये बे-रूखी सफ़ऱ-ए-हयात में चंद सांसे न छीन ले, इकरोज रहमत-ए-कर्म कर ए!मुसाहिब जीस्त-ए-जहां मोड़ दो। "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌱"दायरा/دائرہ"🌱 🌿"Daayra"🌿