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“यादों का सफ़र” ****************** मैं अकेले कहाँ ह

“यादों का सफ़र”
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मैं अकेले कहाँ हूँ अब भी !
मेरे साथ हैं तुम्हारी यादों का सफ़र,
ये मुस्कान, ये धरा, ये अम्बर, 
सभी गवाह हैं उन पलों की हरपल !
 
मैं अकेले कहाँ हूँ अब भी !
मेरे साथ है तुम्हारी यादों का मंजर..
बस, फ़र्क़ इतना रहा अब तो,
जब तुम बात करते थे,
मैं मंत्रमुग्ध होकर सुनती थी तुमको, 
पर अब मैं बात करती हूँ तुम सुनते हो,
और सुनते ही रहते हो,
जवाब नहीं देते।

तुम्हारी हरे रंग की डायरी में,
वो लाल गुलाब की सुगन्ध, 
जो आज भी तरों ताज़ा है पन्नों में,
बस, फ़र्क़ इतना है उनमें !
उसमें महक, तुम्हारी बातों में महकती थी कभी,
चाय की चुस्की के साथ गर्म बातों का था शमा,,
ये जंगल, ये सुखी, हरी, भूरी पत्तियाँ की सरसराहट,,
कुर्सी पर तुम्हारी परछाईं से आज भी बातें करते हैं हरदम !
 
मैं अकेले कहाँ हूँ अब भी !
तुम्हारी बातों का स्मरण व अनुसरण करके,
सहयोगी साथी बनकर , अब थकती नहीं हूँ कभी मैं,,
याद रखती हूँ तुम्हारी बातों को, 
तुमने कहते थे ना हमेशा, ....

“जीवन का अस्तित्व हो ऐसा, ख़ुशियाँ भरा मक़सद हो जैसा”

इन्ही यादों के साथ आगे बढ़ते हुए,
ज़िन्दगी की ख़ुशहाली में, पता ही नहीं लगा,
कब मैं तुम, और तुम मैं, हो गए !
तुम वक़्त हो मेरा, हर वक़्त साथ हो मेरे,
दिल के करीब प्यारा एहसास हो तुम मेरे,,
मैं राधा तो श्याम हो तुम मेरे..
मैं अकेली कल भी नहीं थी ना आज हूँ..,,
मैं सुर हूँ तो मेरा साज,आवाज़ हो तुम मेरे,,
इश्क़ का पहला और आख़िरी बरसात हो तुम मेरे..!!
मैं अकेले कहाँ हूँ, मैं अकेले कहाँ हूँ 
हर एक लम्हें में आस-पास हो तुम मेरे..!!
  
Meaning
मंज़र      -‘view’ or a ‘scenery’
मक़सद   - motive
वक़्त      -Time

©Rishnit
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Pramodini mohapatra SIDDHARTH SHENDE  Priyank Beniwal (प्रिय-अंक) Priya Gour Anshu writer  Aafiya Jamal सत्य Saad Ahmad ( سعد احمد ) anurag Dubey