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ये खामोशी तेरी क्यों इतना बेचैन करती है । सौ टुकड़

ये खामोशी तेरी क्यों इतना बेचैन करती है ।
सौ टुकड़े हो चुके हैं, अब हजारों में नहीं बदलना ।। ये खामोशी तेरी क्यों इतना बेचैन करती है ।
सौ टुकड़े हो चुके हैं, अब हजारों में नहीं बदलना ।।

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ये खामोशी तेरी क्यों इतना बेचैन करती है ।
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